खेतों के शजरों या नक्शे में बनाये जाने वाले चिन्हों का विवरण तथा चिन्ह
(1) खेल का मैदान - खेल के मैदान के चिन्हों के लिए दो खम्भे वालीबाल का नैट बँधे हुए बनाकर स्थिति स्पष्ट की जाती है।
( 2 ) पंचायत घर - पंचायत घर को स्पष्ट करने के लिए दीवारों पर रखे छप्पर के रूप में झोपड़ी का चित्र बना दिया जाता है। इसको लम्बाई तथा चौड़ाई की दीवारों में एक एक दरवाजा (द्वार) बना दिया जाता है। ध्यान रहे चौड़ाई की दीवार के तन वाली रेखा नहीं खींची जाती है।
(3)वृक्षारोपण हेतु भूमि- पेड़ लगाने की भूमि को प्रदर्शित करने हेतु दो तीन पेड़ों के चिन्ह बनाकर स्पेष्ट करते हैं। एक सीधी लायन के ऊपर तीन तीन शाखायें बनाकर उन्हें मोटा कर पेड़ का रूप दिया जाता है।
(4) खाद के गड्ढे- खाद के गड्ढे को स्पष्ट करने हेतु दो तीन वर्ग बनाकर स्थिति स्पष्ट करते हैं। वह प्लाट के आकार के अनुसार छोटे बड़े बनाये जा सकते हैं। वर्ग का आशय किसी गड्ढे जैसी अकृति से है।
(5) चरागाह (पशुचर भूमि)- चरागाह भूमि को स्पष्ट करने के लिए तीन स्थानों पर भूमि पर उग रही छोटी बड़ी घास के रूप में दो दो समूहों में घास के पौधे बनाकर स्थिति को दर्शाया जाता है।
(6) खलियान - खलियान को तीन खड़ी रेखाओं में नीचे की ओर न्यूनकोण बनाती हुई रेखायें बनाकर स्पष्ट करते हैं। यह आकार तीन पौधों का जैसा हो जाता है।
(7) आबादी- आबादी के चिन्ह के लिए पहिले बनी हुई वर्तमान आबादी को तीन बड़े कोष्ठ (प्रान्तिस) उलटे बनाकर स्पष्ट करते थे। अब चकबन्दी क्रियाओं में इसका रूप और विस्तृत कर दिया गया है। चकबन्दी आयुक्त ने परिपत्र जारी करके आबादी के चार प्रकार के चिन्ह निर्धारित कर दिये हैं
(1) सामान्य आवासीय स्थल,
(ii) सामान्य आवासीय स्थल के प्रसार हेतु,
(ii) हरिजन आवासीय स्थल में प्रयुक्त भूखण्ड,
(iv) हरिजन आवासीय स्थल के प्रसार हेतु
चारों चिन्ह बड़े सरल हैं आबादी से हरिजन आबादी की भिन्नता मात्र दोनों कोष्टों को बीच में एक पड़ी रेखा से काटते हुए जोड़ देते हैं। आबादी हेतु खाली छोड़ी भूमि के लिए पहिले कोष्ठ के ऊपरी सिरे को दूसरे कोष्ठ के नीचे के सिरे को बीच में तिरछी लायन खींचकर जोड़ देते हैं।
(8) हवाई अड्डा - हवाई अड्डा को स्पष्ट करने हेतु नीचे घास के ऊपर एक छोटा चपटा गोला तथा उसके ऊपर खड़ा अण्डाकार चित्र सबके ऊपर दो छोटे हवाई जहाजों का क्रोस बना देते हैं।
(9) बाग-बाग को स्पष्ट करने हेतु पाँच वृक्षों को बनाकर व्यक्त किया जाता है। वृक्ष बनाने में एक गोल आकार बनाकर नीचे वृक्ष का तना हैं व तने को भूमि के समानान्तर सीधी रेखा आधार के समानान्तर और बढ़ा देते हैं।
(10) नहर- नहर को स्पष्ट करने हेतु वृत्त बनाकर उसके बीच में दो समानान्तर रेखायें नहर जैसी बना देते हैं।
(11) बाँध- बाँध को ठीक बाँध के आकार का ही बना देते हैं। अर्थात् दोनों ओर दो-दो समानान्तर रेखायें बनाकर बीच के भाग को चौड़ाई में मिलाने वाली रेखायें बना देते हैं।
(12) बंजर - बंजरभूमि में घास उगी समझी जाती है अतः एक लाइन में घास इस प्रकार बना देते हैं कि दोनों ओर छोटी और बीच में बड़ी घास उगीसी स्पष्ट हो।
(13) बाँस बाड़ी- बाँस बॉडी बनान हेतु जैसी चिन्ह से ही स्पष्ट होता है एक स्थान पर उगे बाँस - के पौधों का समूह बना देते हैं।
(14) बीहड़ - बीहड़ ऊँची नीची नदी के किनारे खार खड्डे वाली भूमि होती है चिन्ह भी नाले के रूप में स्वतः ही आ मिलने वाली छोटी-छोटी धारायें व घास के चिन्ह बनाकर स्पष्ट करते. हैं। नक्शे में बीहड़ को ऐसे चिन्ह से ही प्रदर्शित करते हैं।
(15) भट्टा- भट्टा बनाने के लिए बड़े आकार से आयत के चार सम भाग करके प्रत्येक भाग में एक-एक ईंट का चित्र बनाकर स्पष्ट करते हैं। यह पड़ाव से मिलता है।
(16)डाक बंगला- ये डाक बंगलों प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के चिन्ह हैं। इन्हें प्रथम श्रेणी में तीन द्वितीय में दो तथा तृतीय श्रेणी में एक दरवाजा बनाकर स्पष्ट करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रथम श्रेणी का डाक बंगला बड़े आकार का बनाया जाता है।
(17) नहर मय सड़क- नहर मय सड़क बनाने हेतु तीन समानान्तर रेखायें इस प्रकार खींचिये कि नहर कुछ चौड़ी रहे और सड़क उसकी अपेक्षा कम चौड़ी सड़क के बीच में बिन्दुदार रेखा भी बनाई जाये जैसा कि रास्ता बनाने में करते हैं।
(18) कच्चा कुआँ- कच्चा कुऑं बनाने हेतु दो छोटे वृत्त एक ही केन्द्र पर एक दूसरे के भीतर डाय से ही बनाइये बीच बाले को काला भर दीजिए दोनों के बीच में चौड़ाई में कुछ लाइनें बना दी जाती है। खसरे के कच्चे कूप के चिन्ह से यह भिन्न है। शजरे के सभी चिन्ह काले रंग के ही बनाये जाते हैं।
(19) पक्का कुआँ-पक्का कुआँ मात्र दोहरा वृत्त होता है। खसरे के स्तम्भ 6 में ऐसा चिन्ह बनाना ट्यूबवेल का घोतक है किन्तु शजरे में यह स्थिति भिन्न होती है। दोनों चिन्हों के बनाये जाने का उद्देश्य पृथक-पृथक है उससे इसे न मिलाया जाते उस में यह चिन्ह लाल मसि से दिया जाता है जबकि नर के सभी चिन्ह काले रंग से छपे रहते हैं।
(20) निष्प्रयोज्य पक्का कुआँ -निष्प्रयोज्य पक्का कुआँ को एक वृत्त के भीतर (+) का चिन्ह (चौपारा) करते हैं। खसरे में वर्ष में प्रयोग किये गये करें के लिए ऐसा चिन्ह बनाया जाता शरे में ऐसा चिन्ह बेकार कुये की स्थिति स्पष्ट करता है। ऐसा चिन्ह मात्र नक्शे के स्थल से मिलान हेतु बड़ा उपयोगी है।
(21) देव स्थान- इसकी आकृति एक आयताकार चित्र की भाँति होती है जिसकी उत्तरी भुजायें लम्बी होती हैं व उत्तरी (ऊपर वाली) भुजा के मध्य में त्रिकोणीय चिन्ह होता है व पूर्वी खड़ी भुजा आयत से ऊँची करके झण्डी बना दी जाती है।
(22) दोहदा- दो गाँवों की हदों को स्पष्ट करने के लिए समबाहु त्रिभुज के मध्य बिन्दु रखकर यह चिन्ह बनाया जाता है।
(23) गिरजाघर- गिरजाघर के बाहरी मध्य भाग का चित्र बनाकर उसके ऊपर धन का चिन्ह बना देते हैं।
(24) बिजली के खम्भे तार (टेल ग्राम) के खम्भों से कुछ मिलता जुलता होता है। वास्तविक खम्भों से भी ये चिन्ह मिलते हैं।
(25) झील के लिए एक अनियमित वृत्त बनाकर उसके भीतर चार पाँच स्थान पर जल में उगी घास या तैरते हुए पत्त्स दिखाते हुए स्पष्ट किया जायेगा।
(26) कब्रिस्तान- कब्रिस्तान एक कब्र का स्थल पर जो स्परूप होता है उसी आकर का चित्र बनाकर इसे व्यक्त किया जाता है। यह सामान्य व्यक्तियों का होता है।
(27) करबला - का चिन्ह बनाने के लए एक आयत इस तरह का बनायें जिसकी उत्तरी भुजा के मध्य में छोटा अर्द्धवृत्त बना हो और चौड़ाई की भुजायें ऊँची करके तीर जैसी बना दी जायें यह ताजिये गाढ़ने वाला स्थान है।
(28) मन्दिर - मंदिर के लिए झण्डा लगे हुए छोटे मन्दिर का चित्र बनाया जाता है।
(29) मरघट- मरघट के लिए बड़ी सरल रेखा के मध्य में अर्द्ध चन्द्राकार आकृति बनाकर उसके मध्य में ऊपर की ओर नोंक जलती हुई ज्वाला जैसी बना दी जाती है। यह जलते हुए मुर्दे का रूप हो जाता है।
(30) मस्जिद - इसके लिए मस्जिद के भीतर तीन कंगूरे बनी हुई आकृति के पश्चात् दोनों सिरों पर पतली मीनारें बनाई जाती हैं व बीच मे गुम्मद बना देते हैं।
(31)नाला - नाला का स्वरूप दो छोटे नालों के आकर मिलने का रूप है। यह दो दोहरी टेड़ी रेखाओं से स्पष्ट की जायें किन्तु उसके बीच में कुछ न बनाया जाये चित्र में रेखाओं के बीच में बिन्दु या कालापन दिखाई देता है वह कुछ नहीं है केवल चित्र का भद्दापन ही है।
(32) नवीन परती - नवीन परती दर्शाने के लिए तीन पड़ी सरल रेखाओं के बायें सिरों पर का चिन्ह बनाया जाता है। तीन वर्ष तक कृषि न करने तक खसरे में नवीन परती लिखी है।
(33) पुरानी परती-पुरानी परती के लिए तीन स्थान पर उगी हुई घास बनाते हैं। तीन वर्ष खाली रहने के बाद दो वर्ष तक पुरानी पर्ती रहती है।
(34) स्कूल- स्कूल केवल एक छोटे वृत्त की परिधि बनाकर इस चिन्ह को शजरे में दशति हैं इसका आशय फुटबाल से है।
(35) सिहद्दा (तीन सिवान)- (सीमा तीन गाँव के सीमा घोतक चिन्ह सहित) इसको स्पष्ट करने के लिए गहरी मोटी लाइन बना कर दो, दोनों के बीच में सीमा को दर्शाती है एवं यथा स्थान वर्गाकार चिन्ह बनाकर उसके मध्य में बिन्दु रखकर सीमा योतक चिन्ह को व्यक्त करते हैं।
(36) पक्की सड़क मय पटरी- इसके चिन्ह को स्पष्ट करने के लिए पक्की सड़क व फुटपाथ की दो समान्तर सरल रेखायें बनायी जाती है तथा उनके समीप एक एक और समानान्तर रेखा बना दी जाती है।
(37) कच्ची सड़क या स्थाई रास्ता- समानन्तर सरल रेखाओं के बीच में विन्दुदार सरल रेखा बना दी जाती है।
(38) तार के खम्भे- इसका आशय डाक टेलीग्राम के खम्भे से है। इसके लिए तार के खम्भे जैसी आकृति बनाई जाती है एक खड़ी सरल रेखा के ऊपर बड़ा कोष्ट ऊपर करके बनाया जाता है। ये ऐसी तीन आकृतियाँ बनानी होती हैं।
(39) थ्योडोलाईट चिन्ह- इस चिन्ह के लिए एक त्रिभुज के भीतर त्रिभुज बनाकर छोटे त्रिभुज के मध्य में धन का चिन्ह बना देते हैं।
(40) कच्चा तालाब- इसके लिए आयत के भीतर आयत बनाकर उसे इस प्रकार से कोनां पर जोड़ देते हैं कि ढाल प्रतीत हो ।
(41) पक्का तालाब - इसके लिए भी आयत के भीतर आयत बनाया जाता है दोनों आयतों की लम्बाई चौड़ाई में मध्य में एक दूसरे से जोड़कर सुन्दर बना देते हैं।इसी प्रकार कोनों पर भी जोड़ दिया जाता है।
(42) टीला- बाहर की ओर शीर्ष करते हुए छोटे-छोटे त्रिभुजाकार चिन्ह इस प्रकार बनाये जाते हैं जैसे अण्डाकार आकृति को घेर रहे हैं। ये सभी छोटे त्रिभज काले गहरे रंग से भर दिये जाते हैं उकने आधार आकृति की ओर व शीर्ष बाहर की ओर बनाते हैं।
(43) नलकूप- दोहरी वृत्ताकार आकृति के भीतर धन या चौपारे का चिन्ह बनाकर स्पष्ट करते हैं। खसरे में चौपारा बनाने का आशय अन्यथा हो जाता है।
(44) तहसील कार्यालय- एक वृत्त के ऊपर झण्डी बनाकर स्पष्ट करते हैं इसके मध्य में बिन्दु भी रखा जाता है। (75) थाना कार्यालय एक वृत्त के शीर्ष पर छोटा दूसरा वृत्त बनाकर स्पष्ट किया जाता है। इसके मध्य में बिन्दु भी रख दिया जाता है।
(45) ऊसर- ऊसर भूमि को स्पष्ट करने के लिए एक ही प्राकर के तीन चिन्ह बनाये जाते - हैं। प्रत्येक चिन्ह को बनाने के लिए एक सरल रेखा के बीच में कोण सा बना देते हैं इसके नीचे के आधे भाग में एक पड़ी रेखा खींच देते हैं।
(46) आयतीकारण चिन्ह- चकबन्दी प्रक्रियाओं में नक्शे पर पूरे गाँव को 25-25 हैक्टेयर के आयतों में विभक्त कर दिया जाता है। इन आयतों के कोनों पर पत्थर गाढ़ दिये जाते हैं। इन्हें नक्शे में दिखाने के लिए एक छोटे वर्ग के मध्य में बिन्दु बना देते हैं तथा उसकी भुजाओं के मध्य में लम्बवत् एक एक छोटी रेखा और बना दी जाती है।
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